पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/५५

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मा पहिला मुदत्त-"नहीं, मुझे एक क्षण यहाँ ठहरना अनुचित समझ पाता है। मैं इमीलिये आपको खोज कर मिला हूँ कि मुझे यहाँ का समाचार फोराल में शीघ्र पहुँचाना होगा। इसलिये युग- गज मे मेरी और से जमा माँग लेना ।। (माता है) दषदस-"चलो युवराज के पास चलें ।" (रोमो गाते है) (पट परिवर्तन) दश्यचौथा, स्थान--अपन । (महाराम पिम्पसार और महरामी वासी) यिम्बमार-“देवी, सुम कुछ समझती हो फि मनुष्य के लिय एक पुत्र का होना क्यों इतना भावश्यक समझा गया है। वामवी-"नाम ! मैं तो समझती हूँ कि पात्मस्य नाम का मो पुनीत म्नेह है उसी फे पोपणं के लिये ।। बिम्बमार-"स्नेहमयी । यह भी हा मकता है, किन्तु मेरे विचार में कार्ड और ही यात भाती है। "