पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/६८

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प्रजातशत्रु +++ सन्त्री एक होकर बज उठ। विश्वभर जिसके मम पर सिर हिला दे, और पागल हो जाय ।' , उदयन-हाँ मागची! वह रूप सम्हारा बड़ा प्रभावशाली था, जिमने उदयन को सुम्हारे चरणामें लुटा ठिया (मथप की सी चेष्टा करता है). फ्रिमो दामी को भेजो कि पद्मावती के मन्दिर में मे " मागन्धी-"आर्यपुत्र की हम्तिम्कन्ध वीणा ले आवे ।" (दासी जाती है) उदयन-"तब तक सुम कुछ मुनायो। (माराम्धो पान कराती है । और गाती है) पालो हिये में मर प्रान प्यार । - नेन भय निर्मोही नहीं, अग्र देखे बिना रहत है तुम्हार । सपको छोह तुम्हें पाया है देखें कि तुम होत ही हमारे ।। तपन बुझे तन की भो' मन की हो हम तुम क्षण न न्यारे । प्रामो हिये में मरे प्रान प्यार || उदयन-“दयेश्वरी कौन हमको सुमको अलग करसफताहै। हमारे पक्ष में पनकर दय, यह मूर्ति भायगी। स्पय निज माधुरी छपि का रसीला गग गायगी ।। भजग तप पतना ही चित में कुछ रह न पायगी । अफेले यिश्म मदिर में तुम्हीं को पूव पायगी ।