पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/७१

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पहिला। ++++- विशेप मिलना नहीं चाहती है। सम्भव है कि उन्ठ फिसी पश्यन्त्र पी पाशंका हो, क्योंकि नई गनी ने मेरे विरुद्ध कान भर दिये हैं। इस लिये मुझे अपनी कन्या ममम कर क्षमा करेंगे। मैं इस समय पही दुखी हूँ फर्वव्य निर्धारण नहीं कर मकसी हूँ।" जीवफ-"राजकुमारी म कहना कि मैं उनकी कल्याण- कामना करता हूँ। आशीर्वाद करता हूँ कि ये अपने पूर्व गौरव को लाम कर | और मगध की काई चिन्ना न करें । मैं केवल मंश कहने यहाँ चना आया था। प्रमो मुझे शीन कोशल आना होगा । यहाँ जाकर भय मैं सब फाय्य ठीर कर लूँगा।" सी-"यहुत अचा।" - नमस्कार करके जाती है) (गौतन का संघ के साथ प्रवेश ) जीवक-"महाजमण के घरणा में अभिवादन करता है।" गौसम-'शान्ति मिले, धर्म में भरा हो। जीवक, तुम अच्छे तो हो १ कहो मगध के क्या समाचार हैं ? मगभ नरेश सहराल सो हैं , - जीयक -"तथागत । भाप से क्या छिपा है। फिर भी मैं कह देना पाहता कि मगध-राजकुल में वही अशान्ति है। वानप्रस्थ ग्रामम में मी महाराज पिम्पमार को शान्ति नहीं है।' । गौतम---"जीवक!- चम्पल पन्द्र, सुर्य्य है पचल, चपल समी प्रह सारा है। ३१