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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/७७

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- - प्रह पहिसा - -विरसफ-"धुप रहो मुवृत्त । पिता कहेगा और पुत्र उमे मुनेगा। तुम चाटुकारिता करके मुझे अपमानित न करो।" । प्रसेन-"अपमान ! पिता से,पुर फा अपमान ] क्या यह विद्रोही युवक-हदय जो नीच रक से फलुपित है युवराज होने के योग्य है। अमात्य " अमात्य-"प्राशा पृथ्वीनाथ !" प्रसेन-"(स्वगत)अमी से इसका गर्व सोर देना चाहिये । (प्रकट) आज से यह निर्मीक किन्तु अशिए पालफ अपने युवराज पद मे मच्चित किया गया। और, इसकी माता की राजमहिपी को सा सम्मान नहीं होगा-केवल जीविका निर्वाह के लिये ' इसे राजकोश में व्यय मिला करेगा । " । विरुद्धक - " महाराजे ! मैं न्याय चाहता हूँ !" ' प्रमेन-"अयोध! तू पिता से न्याय पाहता है। यदि पक्ष निर्मल है और पुत्र अपराधी है तो फिस पिता ने पुत्र के लिये न्याय किया है। वेरा बड़प्पन और महत्वाकाक्षा से पूर्ण उपय अच्छी तरह कुचल दिया जायगा-पस, पला भा।" -- 1. (विभक सिर मुनगर नावा) । अमात्य-"यदि अपराध,शमा हो तो कुछ प्रार्थना करूं। यह न्याय नहीं है 1 फोशल के राजदएर ने कमी ऐसी व्यवस्था नहीं री। किसी दूसरे के पुत्र प्रकलफित कर्म सुन करभीमाम् उजित