पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/८५

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अदूसरा न सहमत होंग । दूत, तुमें शीघ्र पुरस्कार और पत्र मिलेगा-जामो विभाम करो। (ति गाता है) अजात:--"गुरुदेव ! यदी अनुकूल पटना है ! मगध जैसा परिवर्तन कर घुका है, वही तो फोशल मी चाहता है। हम नहीं सममवे कि इन मुद्दों को क्या पड़ी है और इन्हें सिंहासन का कितना लोम है। क्या नवीन उद्योग को, यह पुरानी और नियन्त्रण में यी हुई, मस्कार के कीचड़े में निमस्थित राजतन्त्र की पति, असफल करेगी । विल भर भी जो अपने पुराने विचारों से मटना नहीं पाइसा, उसे अवश्य नष्ट हो आना चाहिये, क्योंकि यह जगत ही गतिशील है।" देवदत्त-"अधिकार ! चाहे वे कैसे भी अर्जर और हलकी । नींव के हो, अथवा अन्याय ही से क्यों न मगठित हो, सहम में नहीं छोड़े जा सकते । भद्रजन, असे विचार से काम में लाते हैं और हठी सथा दुराग्रही उमे तय तक परिवर्तन भी नहीं करना पाहते, जप सक व एक पार ही नहीं हटा दिये जॉय- दौवारिक–(प्रवेश करके) "जय हो देव । महामान्य परिपद फे मभ्यगण पाए हैं।" , भजात-"शीघ्र आवे।" -- (वारिक नाकर डिवा माता है) परिपतगण-"मम्राट् की जय हो। महात्मा को अभिवादन