पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/८६

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अजातशत्र। देवदस-"राष्ट्र का कल्याण हा। राजा और परिपद की श्रीवृद्धि हो । बैठो। परिपद०-"क्या आशा है ।" अजात-आप लोग राष्ट्र के शुभचिन्तक हैं, जब पिता जी ने यह प्रकाण्ड योम मरे सिर पर रसा, और मैंने इसे पहन किया, सब इसे भी मैने किशोर जीवन का एक कौतुक हो समम्भ था। किन्तु बात वैसी नहीं थी। मान्य मदोग्यो,राष्ट्र में एक एसी गुम शक्ति का कार्य स्खुले छाया चल रहा है कि जा इम शपि, शाली मगध राष्ट्र को उन्नत नहीं देरया चाहना । और हमने केवल इस बोझ को आप लोगों की शुभेच्छा फा महारा पाकर लिया था। आप लोग वताइये कि उस शक्ति का दमन भाप लोगों को अभीष्ट है कि नहीं। या अपने राष्ट्र और मम्राट में आप लोग हेय मिलू करना चाहते हैं ? । परिपत्-"कभी नहीं। मगध का राष्ट्र सहम गर्व से समन रहेगा, और विरोधी शक्ति पददलित होगी " . देवदत्त-"मभ्यो। कुछ में भी कहना चाहता हूँ हमारा व्यक्तित्व भी भाप लोगों का महकारी हो सकता है और राष्ट्र का कल्याण करने में सहायता देने को प्रस्तुत है । , इम ममय जग कोशल फा राष्ट अपने यौवन में पैर रख रहा है तब विद्रोह की प्रापश्यकता नहीं, राष्ट्र के प्रस्पेक नागरिक को उमकी उन्नति सोधनी चाहिये । राजफुल फे फौटुम्यिक मगहों से और गढ़ से फोर्ड पेमा सम्बन्ध नहीं कि उनके पक्षपाती होकर हा अपन' १२