पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/८७

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मरा। देश की और माति की दुर्दशा करायें। सम्राट् की विमाता पार पार विप्लव की सूचना दे रही है यद्यपि महामान्य सम्राट विम्य सौर ने अपना सत्र अधिकार अपने सुयोग्य मन्सान को दे दिया है फिर भी ऐसी दुरचेष्टा क्यों की जा रही है। काशी जो कि बहुत दिनों से मगध का एक सम्पन्न प्रान्त होरहा है पासवी देषीके पडयन्त्र मे गृजम्ब देना अस्वीकार करता है। यह कहता है कि में कोशल का दिया हुआ पासवीदेवी का रक्षित धन हूँ। फ्या मसे सुरम्य और धनी प्रदेश को मगध छोड़ देने के लिये प्रस्तुत है। क्या फिर इसी तरह और प्रदेश भी स्वतन्त्र होने की चेष्टा न करेंगे ? क्या इसी में राष्ट्र का कल्याण है ?" । सय-"फमी नहीं-कमी नहीं। ऐसा कदापि न होने पावेगा।" अजात-"तप आपलोग हमारा साथ देने के लिये पूर्ण रूप से प्रस्तुत हैं ? देश को अपमान से बचाना चाहते हैं ? - मय-"अवश्य ! राष्ट्र के कल्याण के लिये प्राण सफ विसर्जन किया जा सकता है और हम सय ऐसी प्रतिज्ञा करते हैं।" - देवास-"तथास्तु ! क्या इसके लिये कोई नीति आपलोग निघांरित करेंगे ? एक मभ्य-"हमारी मम्मति है कि आप ही इस परिपद के अधिष्ठाता पर्ने, और नवीन सम्राट् को अपनी स्वतन्त्र सम्मति देकर राष्ट्र का कल्याण करें, क्योंकि आप सहरा महात्मा मर्वलोक के हित की कामना रखते हैं। राष्ट्र का उद्धार करना भी भारी - परोपकार - - ५३.