पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/९२

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अजातशत्रु। विरुद्धफ-"मित्र बन्धुल ! तुम यहे सरल हो । अब तुम्हारी सीमा के भीतर कोई उपद्रव होगा वो मुझे इसी तरह बाहान फर सकते हो। किन्तु इस समय तो मैं एफ मरी-तुम्हारे शुभ की बात-कहने आया हूँ। कुछ समझते हो कि तुमको काशी का सामन्त क्यों मनाकर भेजा गया है।" बन्धुल-"यह सो पड़ी सीधी बात है। कोशलनरेश इस राज्य को हस्तगत करना चाहते हैं, मगध भी उत्तेजित है, युद्धकी सम्मा- बना है इसलिये मैं यहाँ भेजा गया हूँ। मेरी बीरता पर कोशल को विश्वास है।" विरुद्धक-"क्याही अच्छा होता कि कोशल तुम्हारी बुद्धि पर भी अभिमान कर सकता किन्तु वात कुछ दूसरी ही है।" बन्धुल-"वह क्या ?" विरुखक-"वह यह कि कोशलनरेश को तुम्हारी वीरता से सन्तोष नहीं, किन्तु भाता है। राजशक्ति किसी को भी इसना समत नहीं देखा चाहती 17 बन्धुल-"फिर सामन्त मना कर मेरा क्यों सम्मान किया गया ?" मिरुसक-"यह एक पढ़यन्त्र है। जिसमें तुम्हारा अस्ति व न रह जाय ।" पन्धुल-"विद्रोही राजकुमार | मैं तुम्हें पन्दी पनाता हूँ। सावधान हो" (पकड़ना चाहता है)