पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/९३

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मदूसरा विरुद्धफ-"अपनी चिन्ता करो। मैं ही 'शैलेन्द्र' हैं।" (विध मिका नाता है। फिर, पम्पुप्त भी पवित होकर कहा जाता है) (श्यामा का प्रवरा ) ।। श्यामा-(स्वगत) “रात्रि चाहे कितनी ही भयानर हो किन्तु प्रेममयी रमपी के हदय मे भयानक वह कापि नहीं हो सकसी। यह देखो पवन मानो किसीटर मे धीरे धीरे सॉस से रहा है। किमी भात से पक्षी पृन्द अपने घोंसलों में आफर छिप गये हैं पाकारा के ताराओं का मुष्ठ नीरव मा है। कोई भयानफ बात देखकर भी वह बोल नहीं सकता है, केवल भापम में इशित कर रहे हैं। ससार किसी भयानक ममस्या में निमग्न सा प्रतीत होता है किन्त में शैलेन्द्र से मिलने आई है। यह गक है तो क्या, मेरी भी अहम वासना है । फिन्तु मागन्धी । चुप, वह नाम क्यों लेती है। मागधी कौशाम्पी के महल में भाग लगाकर जल मरी । भय तो मैं श्वामा बोकाशी की प्रसिद्ध वारविलासिनी है । पासना को परिवार हैं। बड़े बड़े राजपुरुष पोर भेष्टी इस घरण को पन्य समझते हैं। धन की कमी नहीं, मान का बठिकाना रामरानी होकर और क्या मिलता था, की पास