पृष्ठ:अणिमा.djvu/१९

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तुम्हें चाहता वह भी सुन्दर,
जो द्वार-द्वार फिरकर
भीख मागता कर फैलाकर।

भूख अगर रोटी की ही मिटी,
भूख की ज़मीन न चौरस पिटी,
और चाहता है वह कौर उठाना कोई,
देखो, उसमें उसकी इच्छा कैसे रोई,
द्वार-द्वार फिर कर
भीख मागता कर फैला कर—
तुम्हें चाहता वह भी सुन्दर।

देश का, समाज का
कर्णधार हो किसी जहाज़ का।