पृष्ठ:अणिमा.djvu/३

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भूमिका

'अणिमा' मेरे इधर के पद्यों का संग्रह है। अधिकांश गीत हैं। कुछ गीत आल-इण्डिया-रेडियो, दिल्ली और लखनऊ, से गाये गये हैं। प्रायः सभी गीतों की भाषा सरल है। भाषा में भी कई प्रकार हैं। गाने की अनुकूलता और स्वर के सौन्दर्य और श्रुति-मधुरता के विचार से, पुस्तिका के प्रारम्भ के गीत मुझे ज़्यादा पसंद हैं। मेरे कुछ साहित्यिक मित्रों ने बाद के गीतों की तारीफ़ की है। उनकी भाषा गद्य के अनुसार है। प्रान्तीय भाषाओं में, ख़ासकर उर्दू में, यह प्रकरण है और ज़ोरों से चल रहा है। मैंने पहले भी इस प्रकार के पद्य लिखे हैं। कुछ छोटी-बढ़ी रचनाएँ प्रसिद्ध जनों पर हैं जो काव्य की दृष्टि से, आलोचकों के कथनानुसार, अच्छी आई हैं। पढ़ने पर पाठकों को प्रसन्नता होगी। मुझे विश्वास है कि शीघ्र नये नये उद्भावनों से मैं हिन्दी के समुत्साही पाठकों की अधिक से अधिक सेवा कर सकूँगा। इति।

युग-मन्दिर, उन्नाव
१. ८. ४३.
―"निराला"