यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८२
राजकर्मचारीजी सबसे विद्वान थे—
आदरणीय, राज्य के प्रधानामात्य-पद पर;
उन्हीं ने सभापति का आसन सुशोभित किया।
बग़ल में श्रीस्वामीजी की कुरसी रक्खी गई।
समागत सभ्य विद्वानों के व्याख्यान हुए
श्रीमद्रामकृष्ण परमहंस देव पर, कोई
स्वामी श्रीविवेकानन्द जी के विषय पर बोले,
आधुनिक धर्म, त्याग,
जाति का उत्थान, प्रेम,
सेवा, देश-नायकता,
भारत और विश्व जैसी गहन समस्या लेकर।
एक ब्रह्मचारी ने
स्वामी श्रीविवेकानन्दजी की 'वीरवाणी' से
'सखा के प्रति' विशिष्ट पद्य की आवृत्ति की।
स्वामीजी से बोलने के लिए प्रार्थना हुई।
जनता उदग्रीव देखती थी वह पवित्र मुख।
स्वामीजी खड़े हुए,
कहा, "हम सेवक हैं,