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अतीत-स्मृति
 

दूसरे रूप में "प्रजायन्ते युगक्षये" के स्थान पर "वर्षयिष्यन्ति मानवान्" है।

श्लोक का दूसरा पाठान्तर विशेष शुद्ध मालूम होता है। परन्तु श्लोक के दोनों पाठों से यह स्पष्ट प्रकट होता है कि किसी समय भारत में सोलह वर्ष के पूर्व लड़कियों का विवाह न होता था।

महाभारत के अन्तिम पर्व के अन्तिम दो अध्यायों में भी अठारह पुराणों का जिक्र है। महाभारत में कई जगह इस बात का उल्लेख है कि संसार मे इतने शास्त्र और इतनी विद्यायें है। परन्तु कहीं भी अठारह पुराणों का वर्णन नहीं। अतएव अन्तिम पर्व का छठा अध्याय निःसन्देह प्रक्षिप्त है। इसके पहिले का अर्थात् पांचवा अध्याय भी पीछे से मिला दिया गया है; क्योकि स्वर्गारोहण तो चौथे ही अध्याय मे हो गया था। पांचवें अध्याय में सिवा पहले अध्यायों की बातो के और कुछ नहीं। उदाहरण के लिए पांचवें अध्याय के ६८ वें और ६९ वें श्लोक आदि पर्व के दूसरे अध्याय के ६९५ वें और ६९६ वें श्लोक की केवल नकल है।

जब हम आधुनिक पुराणों को जाँच की कसौटी पर कसते हैं तब मालूम पड़ता है कि सारे पुराण महाभारत के पीछे बने हैं। रहे वैदिक समय के पुराणेतिहास, सो वे कुरु-पाण्डवों की कथा से संयुक्त होकर महाभारत के रूप में परिवर्तित हुए विद्यमान है। एक भी आधुनिक पुराण महाभारत के पहले का नहीं।