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पुराणों की प्राचीनता
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पुराण वैदिक समय में भी थे। उस समय भी वे इतिहास-संयुक्त थे। पीछे से उन्हें पञ्चम वेद, महाभारत का रूप, प्राप्त हुआ। इन बातों का वर्णन हो चुका। अब हम आधुनिक पुराणों की ओर झुकते है। आधुनिक पुराण सन् ईसवी से १४० वर्ष पूर्व के नहीं। व्याकरण-महाभाष्य की रचना भी उसी समय की है। मनु-संहिता उससे भी पीछे की है। इन दोनों पुस्तकों में दुर्गा गणेश, महादेव आदि देवताओं का कहीं भी जिक्र नहीं। आधुनिक पुराणों मे बहुत सी वैदिक कथायें हैं। परन्तु उनका रूप तोड़ मरोड़ कर कुछ का कुछ कर दिया गया है। बहुत सी कथायें नई भी है; उनमें नये नये राजवंशो और राजों का वर्णन है। पूर्व-काल के राजो के बल-विक्रम और गौरव की कथायें लोग पुराणों मे सुनते थे। इस कारण, समय समय पर, पुराणों की भाषा में भी परिवर्तन होता रहा है। जैसे जैसे आर्य-सभ्यता भारत में फैलती गई वैसे ही वैसे नये नये प्रदेश, नदी, पहाड़ और अन्य स्थानों के नाम पुराणों में आते गये। आधुनिक और वैदिक पुराणो में और भी कई प्रकार का भेद है। इन बातों पर विचार करने से प्रकट होता है कि आधुनिक पुराण बहुत प्राचीन नहीं है। परन्तु एक बात अवश्य है। आधुनिक पुराणों में, एक बार बन जाने पर, उसके बाद विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। आधुनिक पुराणों मे वैदिक समय के राजों और राजवंशों के नाम से ही पाये जाते है जैसे कि वैदिक पुराणों मे है। मत्स्य-पुराण में जहाँ इक्ष्वाकु-वंश का वर्णन है वहां लिखा है-