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पुराणों की प्राचीनता
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उड़ीसा में ब्रह्मपुराण बढ़ाया गया; गया में अग्निपुराण में कितने ही अध्याय मिलाये गये, पुष्कर में पद्मपुराण में पुष्कर की कथा और कालिदास-कृत शकुन्तला और रघुवंश के उल्लेख को भी स्थान दिया गया। यह सब मिश्रण तो अवश्य होता रहा, परन्तु पुराणों की उस रचना-शैली में कोई परिवर्तन नहीं किया गया जिसका समय सम्भवतः सन ईसवी के सौ दो सौ वर्ष पहले का जान पड़ता है।

कर्म-काण्ड के सुभीते के लिए ही वेदों का क्रम-विभाग हुआ। पुराण उनसे पृथक किये गये। परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि पुराणों के बनाने वाले व्यास जी ही थे। महाभारत में भी ऐसा नहीं लिखा। महाभारत मे केवल इतना ही लिखा है कि व्यास जी ने अपने शिष्यों को पुराण पढ़ाया और इन शिष्यों ने पुराणों की उन्नति की।

अब यदि कुरुपाण्डवो की कथा पृथक् कर दी जाय तो महाभारत ही से पता लगता है कि पुराणों की उत्पत्ति "लोमहर्षण" द्वारा हुई। रही भारतीय कथा; सो उसे व्यास जी के शिष्यों ने रचा।

"लोमहर्षण" शब्द की व्याख्या वायुपुराण मे इस तरह की गई है-

लोमानि हर्षयांश्चक्रे श्रोतृणां यत्सुभाषिते।
कर्मणा प्रर्थितस्तेन लौकेऽस्मिन् लोमहर्षणः॥

इससे मालूम होता है कि पुराण किसी एक व्यक्ति के बनाये