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१०-सोम-लता

प्राचीन आर्यों की सब से प्यारी चीज सोमलता थी। सोम, सोम-रस, सोम-लता, सोम-सुरा आदि के गुणगान से वैदिक साहित्य भरा पड़ा है। वैदिक समय में सोम-लता और सोम-रस का यज्ञादिक मे इतना काम पड़ता था जितना शायद ही और किसी चीज का पड़ता रहा हो । सोम-याग, सोम-याजी, सोमपायी आदि शब्द सोम ही की महिमा के सूचक हैं। शुक्ल-यजुर्वेद- संहिता के उन्नीसवें अध्याय में, जहाँ सौत्रामणी यज्ञ का विधान है, सर्वत्र सोम ही सोम और सुराही सुरा का साम्राज्य देख पड़ता है। उसकी स्तुति, प्रार्थना, प्रशंसा, गुणकीर्तन, पान, विधान आदि के विषय मे अनेक मंत्र हैं। ऋग्वेद का नवां मण्डल भी सोम-गुण-गान से भरा है । पर यह सोम-लता आज कल ही क्यों, बहुत पहले से अप्राप्य हो रही है। अब जहाँ कहीं यज्ञादि में उसका काम पड़ता है वहाँ उसका स्थान किसी और ही चीज को देना पड़ता है।

सुश्रुत ने सोम को एक प्रकार की अमृतात्मक दिव्य औषधि माना है । उसको उत्पत्ति, नाम, गुण और सेवन की क्रिया का जो वर्णन सुश्रुत ने किया है, सुनने लायक है। सुश्रुत के कथन का भावार्थ हम नीचे देते हैं-