पृष्ठ:अतीत-स्मृति.pdf/११२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
सोम-लता
१०५
 


कीले होते है-ऐसे चमकीले जैसा हीरा, स्फटिक या वैडूर्य होता है। सब दाँत एक से होते हैं। छोटे बड़े नहीं होते। खूब मज़बूत और बड़ी से बड़ी चीज तोड़ सकने योग्य होते हैं। उस दिन से पच्चीसवें दिन तक पुराने चावलो का भात, दूध और यवागू के साथ मजे मे खाता रहे।

छब्बीसवें दिन से दोनों वक्त चावल का नरम भात, सिर्फ दूध के साथ, खाय। तब नये नाखून निकलते हैं। वे मूँगा, बीरबहूटी और प्रातः कालीन सूर्य के सदृश सुर्ख होते है। चिकने भी होते है और "स्थिर" भी होते है। केश भी नये निकल आते है। त्वचा भी उत्पन्न होकर सम्पूर्णता को पहुँच जाती है। रङ्ग विष्णु भगवान् की त्वचा के रङ्ग् का जैसा होता है-नील कमल, अलसी के फूल और वैडूर्य्य मणि का जैसा रङ्ग होता है वैसा।

एक महीने बाद सिर के बाल मुँडवा देने चाहिए और उस पर उशीर, चन्दन और काले तिल का लेप लगाना चाहिए। अथवा दूध से स्नान कराना चाहिए। मुँडवाने के सात दिन बाद नये केश निकलते है। वे भ्रमर और काजल के समान काले होते हैं; घुँघराले भी होते है और खूब चिकने भी होते है। याद रहे, अब तक सोमपायी महाशय तीन कक्षा (तीन पौठ) के घर के भीतर तीसरी कक्षा ही में रहे है। पर अब तीन रातें और बीत जाने पर, भीतरी कमरे से निकल कर दूसरे मे आवें और जरा देर रह कर फिर भीतर ही उसी कमरे में घुस जायँ। इसके बाद वल नामक तैल बदन पर मलने के लिए, जौ के आटे का उबटन कृष्ण