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अतीत-स्मृति
 


पक्ष में एक एक करके गिर जाते है । पूर्णिमा के दिन पूरे १५ पत्ते हो जात है और अमावस्या को एक भी नहीं रहता।

अंशुमान सोम मे घो के सहश सुगन्ध होती है। राजतप्रभ में कन्द होता है। मुञ्जवान् में केले की तरह का कन्द होता है। उसके पत्ते लहसुन के पत्तों के समान होते है । चन्द्रमा नाम के सोम में सोने के सदृश चमक होती है। वह हमेशा जल में होता है। गरुडाहत और श्वेताक्ष सफेद रंग के होते हैं । आकार उनका सांप की केंचुली के सहश होता है। पेड़ों के अग्र-भाग में वे लिपटे रहते हैं । इन दोनों सोमों में अनेक प्रकार के चित्रविचित्र मण्डल (घेरे) बने रहते हैं । जितने सोम हैं सब मे १५ ही पत्ते होते हैं। किसी में मोटी जड़ होती है; किसी में दूध होता है; किसी की लता होती है। किसी के पत्ते किसी प्रकार के होते हैं, किसी के और किसी प्रकार के ।

हिमालय, अबुद (आबू), सह्याद्रि, महेन्द्र, मलयांचल श्रीपर्वत, देवगिर, देवसह, पारियात्र, विन्ध्याचल आदि पर्वतो में सोम अत्यन्त होते हैं। देवसुन्द नाम के सरोवर मे भी वे होते हैं।

व्यास नदी के उत्तर में जो पांच बड़े बड़े पर्वत है उनके मध्य और अधोभाग में सिन्धु नाम की महानदी है। उसमें चन्द्रमा नाम का उत्तम सोम पानी पर तैरा करता है । * उसी के पास


  • मूल पाठ यह है-उत्तरेण वितस्ताया. प्रद्धा ये महीधराः ।