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सोम-लता
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अंशुमान् और मुञ्जवान् सोम भी होते हैं। काश्मीर में क्षुद्र मानसरोवर नाम का एक दिव्य तालाब है। उसमें गायत्र्य, त्रैष्टुभ, जागत, पक्ति और शंकर नाम के सोम होते है। चन्द्रतुल्य कान्ति वाले और सोम भी वहां होते है।

परन्तु ये सोम सब को नही देख पड़ते । अधर्मी, कृतघन्, ब्राह्मणद्वेषी मनुष्यों को इनके दर्शन अलभ्य है।

सुश्रुतजी के लेख का यही मतलब है। यद्यपि यह कलियुग है । अधर्म, कृतघ्नता और ब्राह्मणद्वेष का साम्राज्य है। यथापि धर्मिष्ठ, कृतज्ञ और ब्राह्मणो तथा वेदो की पूजा करने वाले भी पुरुष एक आध अब भी जहाँ तहाँ देखे जाते है। सोमो के नाम, लक्षण और उत्पचि—स्थान साफ साफ सुश्रुत मे दिये हुए है। सोमरस-पान और तत्सम्बन्धी उपचार भी बहुत कठिन नहीं है। और लोग नही, तो अमीर आदमी तो जरूर ही उन्हे कर सकते हैं। क्या ही अच्छा हो यदि कोई एक आध प्रकार के साम का पता लगाकर किसी अच्छे वैद्य से अपना कायाकल्प करा डाले और हज़ार हाथियो का बल प्राप्त कर के त्रिलोको मे आनन्द पूर्वक विचरण करे। यदि गवर्नमेंट को ऐसे ऐसे १०० आदमी भी




पञ्च तेवामघो मध्यं सिन्धु नामा महानद.।
कामवत्प्लवते तत्र चंद्रमाः सोमप्सत्तमः ॥

इसका भावार्थ पं० ज्वालाप्रसाद जी ने इस तरह लिखा है— "व्यास नदी के उत्तर पर्वतों में तथा जहां पंजाब की पांचो नदी सिन्धु में मिलती हैं वहां चन्द्र नामक सोम उत्पन्न होता है"।