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सोम-लता
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कायाकल्प करके देवता बन जाना जरूर ही मना होना चाहिए। कौन सच्चा स्वदेश-भक्त अंग्रेज चाहेगा कि कोई हिन्दोस्तानी काला आदमी भारत का बड़ा लाट हो जाय?

जिस कायाकल्प का उल्लेख सुश्रुत जी ने किया है वह किसे किसे प्राप्त हुआ था, उसका पता पुराणादि प्राचीन ग्रन्थों से ढूंढ कर कोई लगावे तो बहुत अच्छा हो। सुश्रुत जी के बहुत पीछे के बने हुए ग्रन्थों में बाजीकरण आदि औषधियों के गुणो का वर्णन वैद्यों ने बड़ी ही आलंकारिक भाषा मे किया है। "चूर्णमिदं पयसा निशि पेयं यस्य गृहे प्रमदाशतमस्ति"-इस तरह के अत्युक्ति-पूर्ण लटके इन ग्रंथों मे हजारो भरे पड़े है। परन्तु सुश्रुत जी के कायाकल्प-विधान को ऐसा नहीं कह सकते। वे ऋषि थे। अतएव सत्यवादी थे। उन्होंने जो कुछ लिखा है, बढ़ाकर न लिखा होगा। यदि उनके जमाने में इस तरह का काया-कल्प किसी को भी न सिद्ध हुआ होगा, तो भी उन्होने उसका उल्लेख अपने पूर्ववर्ती ऋषियो के ग्रन्थो के आधार पर किया होगा। पर कुछ प्रमाण या कुछ आधार उनके पास रहा जरूर होगा।

सुश्रुत के बाद के ग्रन्थकारो ने इस सोम-रसायन के पान की प्रक्रिया का वर्णन नही किया। किसी ने किया भी है तो कुछ यों ही नाम मात्र के लिए लिख दिया है। इससे जान पड़ता है कि धीरे धीरे लोग इसे बिलकुल ही भूल गये। अथवा यह शास्त्रोक्त पान और विधान असम्भव समझा जाने लगा।