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अतीत-स्मृति
 

चरक जी भी आयुर्वेदीय चिकित्सा-प्रणाली के आचार्य माने जाते हैं। उनके ग्रन्थ में लिखा है कि सोम (चन्द्रमा) की एक एक कला की वृद्धि के साथ साथ सोमलता का एक एक पत्ता नया होता जाता है और उसके हास के साथ साथ एक एक पत्ता गिरता भी जाता है। इसीसे इस लता का नाम सोम पड़ा। 'सोम' शब्द "सु" धातु से बना है। इस धातु का अर्थ प्रसव करना-पैदा करना है। सोम अमृत पैदा करता है-उसकी किरणों में अमृत रहता है-इसी से वह सोम नाम से प्रसिद्ध हुआ।

सुश्रुत जी के कथनानुसार सोमलता का रस भी अमृत ही के समान गुणकारी होता है। अतएव इस लता का भी सोम नाम यथार्थ है। यहां पर यह शंका हो सकती है कि सोमलता तो अदर्शनत्व को प्राप्त हो गई है; पर सोमोप नामक चन्द्रमा अब तक बना हुआ है। वह अमृत टपकाने के लिए प्रसिद्ध है। परन्तु उसकी किरणो से अमृत का एक कण भी टपकते किसी ने नहीं देखा। अतएव क्या आश्चर्य जो चन्द्रमा के अमृत टपकाने की कथा की तरह सोमरस के पान से अमृत-पान के गुण होने की कथा भी वाग्विलास मात्र हो? अथवा सोमलता की कथा चन्द्रमाही के पौराणिक गुणधर्मों का एक रूपक हो। बात यह है कि जिसे ऐसी कथाओं पर विश्वास नहीं वह यही क्या और भी सैकड़ो शंकायें कर सकता है। मानिए तो मान लीजिए, नहीं तो सशंक या निःशंक जैसे जी में आवे बैठे रहिए।