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सोम-लता
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खालिस सोमरस-पान का भी उल्लेख है। पर, उसके पीने से क्या फल होता था-छर्दि आदि कुछ होती थी या नहीं इसका कहीं उल्लेख नहीं । ब्राह्मण-ग्रन्थो में खालिस सोम-पान की विधि नही लिखी । यज्ञो में जिस सोम का प्रयोग होता था उसमे और कितनी ही चीजें मिलाई जाती थीं। तब उसमें विशेष मादकता उत्पन्न होती थी।

डा० राजेन्द्रलाल ने गवर्नमेंट आव् इंडिया को एक पत्र लिखा था। उसमें उन्होंने वादा किया था कि कुछ समय बाद हम सोम पर एक विस्तृत लेख प्रकाशित करेंगे। परन्तु डाक्टर साहेब का वह लेख हमारे देखने में नहीं आया। शायद वे लिख नही सके उसके पहले ही उनकी मृत्यु हो गई।

आपस्तम्ब-यज्ञ-परिभाषा मे सोमलता बेचने वाले जङ्गली आदमियो से उसके मोल लेने आदि की विधि लिखी हुई है। धूर्त * स्वामी की टीका मे सोमलता का जो लक्षण दिया हुआ है उसमे लिखा है कि सोम एक प्रकार की वल्ली है। उसका


  • इस विषय में हमारे मित्र पं० गिरधर जी शर्मा झालरा-पाटन से लिखते हैं "धूर्त स्वामी के बताये हुए सब लक्षण गिलवे में मिलते

है ; सिर्फ इसे छोड़ कर कि पत्ते नही होते । आयुर्वेद में सोमवल्ली कहने से उनका भी घोष होता है। इसमें दूध निकलता है और बड़ा गुण करता है। पित्त को दूर करता है। त्रिदोषघ्न है। दूध के साथ और विशेष कर बकरियों के दूध के साथ हितकारी है। सम्भव है, प्राचीन आर्य उसका उपयोग सोमलता के नाम से करते रहे हों। उसका एक नाम अमृता भी है। यह भी इसके अमृत-तुल्य गुण का शाक्षी है। यह प्रायः नहीं सूखती ।