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सोम-लता
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के बनस्पति शास्त्र-वेत्ताओ ने जो उसकी खोज की तो पारसियो की होम एक और ही लता निकली। बलोचिस्तान के उत्तरी भाग से लेकर फारिस तक यह बल्ली अधिकता से पैदा होती है और हुम, हुमा, यहमा आदि नामो से प्रसिद्ध है। वहीं इस देश के पारसियों के लिए भेजी जाती है।

सुश्रुत में जहाँ जहाँ सोम की उत्पत्ति लिखी है वहाँ वहाँ बहुत ढूंढ़ने पर भी उसका पता नहीं चलता। अतएव यह निश्चय समझिए कि आर्यों का सोम भारत से हमेशा के लिये तिरोहित हो गया। परन्तु जलन्धर छावनी के लाला देवीदयालु साहब की राय मे सोमलता नष्ट नहीं हुई। वह अब भी अधिकता से पाई जाती है। आप अपनी "फूल" नाम की उर्दू-किताब में एक जगह लिखते हैं "जाबजा उसकी काश्त को जानिब खास तवज्जुह होनी चाहिए"। कृपा करके आप अपने फूल-बाग़ में थोड़ी सी सोमलता लाकर लगावें तो उसको खेती करने वालों को उसका रूप-रंग आदि देखने और उसका बीज या क़लम प्राप्त करने में सुभीता हो।

डाक्टर राक्सवर्ग, एम॰ डी॰, ने "ल्फोरा इंडिया" नाम की एक किताब बनाई है। उसमें सोमलता का कुछ हाल है। उसी के आधार पर पूर्वोक्त लालासाहेब सोम की खेती करने की सिफारिश करते हैं। डाक्टर साहब के कथन का मतलब लाला साहब ने अपनी किताब में इस प्रकार लिखा है-

"सोमलता के फूल छोटे-छोटे बहुत सफेद और निहा-