इस समय लोगों के विचार चाहे जैसे हों पर वैदिक ऋषियों ने देवताओं तक को हलग्राही लिखा है। उनको विश्वास था कि देवताओं ने ही पहले पहल कृषि विद्या मनुष्य को सिखलाई है। ऋग्वेद के आठवें मण्डल में कण्व के पुत्र सौभरि ऋषि कहते हैं-
हे अश्विद्वय, मनु को सहायता करने के लिए तुमने स्वर्ग में हल के द्वारा पहले पहल यव-कर्षण किया। ८-२२-६ एक जगह और लिखा है-
हे अश्विद्वय, तुम ने मनुष्य के लिए हल से जौ बोकर-अन्न उत्पन्न करके, और वन से दस्यु लोगों को दूर भगा कर, आर्य-जाति के लिए विस्तीर्ण ज्योति प्रकाशित की। १-११७-२१
इससे सिद्ध है कि प्राचीन समय में हल जोतना, बीज बोना और खेती करना बुरा नहीं समझा जाता था। सब लोग खेती में श्रद्धा रखते थे। खेती करना अप्रतिष्ठाजनक काम न था। यद्यपि "आर्य्य" और "कृष्टी" शब्दों का आद्यर्थ कृषक था तथापि ऋग्वेद के समय में वह साधारण मनुष्यो के अर्थ में व्यवहृत होने लगा था। पीछे से "आर्य्य" शब्द का विद्वान् आदि और भी अच्छे अर्थों में व्यवहार होने लगा। अतएव यह शब्द बुरे अर्थ का द्योतक नहीं। इसी तरह "हिन्दू" शब्द मुसल्मानों ने यद्यपि हम लोगों के लिए बुरे अर्थ में प्रयुक्त किया तथापि चिरकाल से हम उसे जिस अर्थ का बोधक समझते हैं वह बुरा नहीं
[सितम्बर १९०८