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अतीत-स्मृति
 

तक्षशिला का विश्वविद्यालय

पहले युग का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय तक्षशिला नगर में था। यह नगर वर्तमान रावलपिण्डी के पास था। सूक्त और विनय-पीठ आदि प्राचीन बौद्ध-ग्रन्थों में इसका कई जगह उल्लेख पाया जाता है। प्राचीन काल में यह एक अत्यन्त विख्यात नगर था। एरियन, स्ट्राबो, प्लोनी आदि प्राचीन लेखकों ने इस नगर की विशालता और वैभव-समपन्नता की प्रशंसा जी खोल कर की है। अशोक के राजत्वकाल में उसका प्रतिनिधि यहां रहता था। बौद्ध-ग्रन्थों से पता लगता है कि यह अपने समय में विद्या-सम्बन्धी चर्चा और पठन-पाठन का केन्द्र था। यह विश्वविद्यालय बुद्ध के पहले ही स्थापित हो चुका था। इसमें वेद, वेदांग, उपांग आदि के सिवा आयुर्वेद, मूर्तिकारी, चित्रकारी, गृहनिर्माण विद्या आदि भी पढ़ाई जाती थी।

विज्ञान, कलाकौशल और दस्तकारी के सब मिलाकर कोई अठारह विषय पढ़ाये जाते थे। इनमें से प्रत्येक विषय के लिए अलग अलग विद्यालय बने हुए थे और भिन्न भिन्न विषयों को भिन्न भिन्न अध्यापक पढ़ाते थे। जगद्विख्यात संस्कृत-वैयाकरण पाणिनि और राजनीतिज्ञ-शिरोमणि चाणक्य ने इसी विश्वविद्यालय में शिक्षा पाई थी। आत्रेय यहाँ वैद्यक-शास्त्र के अध्यापक थे। मगध-नरेश बिम्बसार के दरबारी चिकित्सक और महात्मा बुद्ध के प्रिय मित्र तथा मतानुयायी वैद्यराज जीवक ने तक्षशिला ही के अध्यापकों से चिकित्सा-शास्त्र का अध्ययन किया