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बौध्दकालीन भारत के विश्वविद्यालय
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था। विनय-पीठक में महावग्ग नामक एक मनुष्य का हाल है, जिससे प्राचीन भारत की शिक्षा-प्रणाली का अच्छा पता लगता है। कई वर्ष अध्ययन करने के बाद महावग्ग ने अपने गुरु से पूछा कि शिक्षा समाप्त होने में अभी कितने दिन बाक़ी है। गुरु ने उत्तर में कहा कि तक्षशिला के चारों तरफ, एक योजन भूमि मे, जड़ी बूटियों के सिवा जितने व्यर्थ पौधे मिलें उन सब को जमा करो। बेचारे विद्यार्थी ने नियत स्थान के प्रत्येक पौधे को परीक्षा की, परन्तु उसे कोई भी व्यर्थ पौधा न मिला। शिक्षक महाशय ने अपने परिश्रमी विद्यार्थी को खोज का हाल सुना तो बड़े प्रसन्न हुए और महावग्ग से बोले कि तुम्हारी शिक्षा समाप्त हो गई अब तुम अपने घर जाव।

तक्षशिला वैदिक-धर्मावलम्बियों को विद्या का केन्द्र-स्थान था; पर बौद्ध-धर्म का प्रचार होने पर वहाँ बौद्ध लोग भी पढ़ने पढ़ाने लगे थे। यहां से कई बौद्ध विद्यार्थी ऐसे निकले जो समय पाकर खूब विख्यात हुए। बौद्ध-धर्म के सौत्रान्तिक-सम्प्रदाय के स्थापक कुमारलब्ध भी इन्हीं में थे। इनके विषय में हुएनसंग लिखते हैं-"सारे भारत के लोग उनसे मिलने आते थे। वे नित्य बत्तीस हजार शब्द बोलते और बत्तीस हजार अक्षर लिखते थे। उन्होने कई शास्त्रो की रचना की थी। उस समय पूर्व मे अश्वघोष, दक्षिण में देव, पश्चिम में नागार्जुन और उत्तर में कुमारलब्ध अत्यन्त प्रसिद्ध विद्वान थे। ये चारो पंडित संसार को प्रकाशित करने वाले चार सूर्य्य कहलाते थे।"