जिस समय तक्षशिला में वैदिक-धर्मावलम्बियो की प्रबलता थी उस समय तीन बातें ऐसो थीं जिनको यहाँ पर लिख देना हम उचित समझते है। एक तो यह कि उस समय की शिक्षाप्रणाली नियमबद्ध विश्वविद्यालयो की जैसी न थी; किन्तु ऐसी थी जैसे कि वर्तमान काल में बनारस की है। पर बौद्ध विहारो की पढ़ाई इससे ठीक उलटी थी। वहाँ की शिक्षाप्रणाली वैसी ही थी जैसी नियमबद्ध विश्वविद्यालयों की होनी चाहिए। दूसरी बात यह कि बौद्ध विहारों की तरह यहाँ पर केवल सन्यासियों ही को शिक्षा न दी जाती थी; किन्तु गुरु और शिष्य दोनो ही गृहस्थ होते थे। यह बात असतमन्त जातक की एक कहानी से और भी स्पष्ट हो जाती है। एक ब्राह्मण ने अपने पुत्र से पूछा कि तुम कैसा जीवन बिताना चाहते हो। यदि तुम ब्राह्मण-राज्य में प्रवेश करना चाहते हो तो बन को जाओ और वहाँ अग्निहोत्र करो। यदि गृहस्थ बनना चाहते हो तो तक्षशिला जाकर किसी विख्यात पंडित से विद्याध्ययन करो, जिसमें सुखपूर्वक गृहस्थ जीवन बिता सको। पुत्र ने उत्तर दिया:-"मैं वानप्रस्थ बनना नहीं चाहता; मेरी इच्छा गृहस्थ बनने की है"। तक्षशिला के वैदिक विद्यालयो में ध्यान देने योग्य तीसरी बात यह थी कि उनमें केवल ब्राह्मण और क्षत्रिय बालक ही भर्ती किये जाते थे।
नालन्द का विश्वविद्यालय
बौद्धकाल के दूसरे युग में सब से बड़ा विश्वविद्यालय नालन्द मे था। यह स्थान मगध की प्राचीन राजधानी राजगृह से सात