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बौध्दकालीन भारत के विश्वविद्यालय
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मील उत्तर की ओर, और पटना से चौतीस मील दक्षिण की ओर था। आज कल इस जगह पर बारगाँव नामक ग्राम बसा हुआ है, जो गया जिले के अन्तर्गत है। नालन्द की प्राचीन इमारतों के खँडहर यहाँ अभी तक पाये जाते हैं। सातवीं शताब्दी के प्रसिद्ध चीनी यात्री हुएनसंग ने नालन्द की शान व शौकत का बड़ा ही मनोहर वृत्तान्त लिखा है। चीन ही में उसने नालन्द का हाल सुना था तभी से इसे देखने के लिए वह ललचा रहा था। इधर उधर घूमते-घामते जब वह गया पहुंचा तब विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने उसे नालन्द में आने के लिए निमंत्रण दिया। इससे उसने अपने को धन्य समझा। नालन्द में पहुंचते ही उसके दिल पर ऐसा असर पड़ा कि वह तुरन्त विद्यार्थियो मे शामिल हो गया।

नालन्द की बाहरी टीमटाम

विद्यालोलुप चीनी सन्यासी नालन्द की भव्यता और पवित्रता देख कर लव हो गया। ऊँचे ऊँचे विहार और मठ चारों ओर खड़े थे। बीच बीच में सभागृह और विद्यालय बने हुए थे। वे सब समाधियो, मन्दिरो और स्तूपो से घिरे हुए थे। उनके चारों तरफ बौद्धशिक्षको और प्रचारको के रहने के लिए चौमंजिला इमारतें बनी हुई थी। उनके सिवा ऊँची-ऊँची मीनारो और विशाल भवनो की शोभा देखने ही योग्य थी। इन भवनों में नाना प्रकार के बहुमूल्य रत्न जड़े हुए थे। रंग बिरंगे दरवाजों, कड़ियो, छतों और खम्भों की सजावट को देख