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अतीत-स्मृति
 


कर लोग लोट-पोट हो जाते थे। विद्या-मन्दिरों के शिखर आकाश से बातें करते थे और हुएनसंग के कथनानुसार उनकी खिड़कियों से वायु और मेघ के जन्मस्थान दिखाई देते थे। मीठे और स्वच्छ जल की धारा चारों ओर बहा करती थी और सुन्दर खिले हुए कमल उसकी शोभा बढ़ाया करते थे।

नालन्द का आन्तरिक जीवन

विशालता, नियमबद्धता और सुप्रबन्ध के विचार से नालन्द का विश्वविद्यालय वर्तमान काशी की अपेक्षा आक्सफ़र्ड से अधिक मिलता-जुलता था। विश्वविद्यालय के विहारों में कोई दस हजार भिक्षु विद्यार्थी और डेढ़ हजार अध्यापक रहते थे। केवल दर्शन और धर्मशास्त्र ही के सौ अध्यापक थे। इससे संबंध रखनेवाला पुस्तकालय नौ-मंजिला था, जिसकी ऊँचाई करीब तीन-सौ फुट थी। उसे महाराज बालादित्य ने बनवाया था। इसमें बौद्ध-धर्म-सम्बन्धी सभी ग्रन्थ थे। प्राचीन काल में इतना बड़ा पुस्तकालय शायद ही कहीं रहा हो। दुनिया में आजकल जितने विश्वविद्यालय हैं सब में विद्यार्थियों से फीस ली जाती है। पर नालन्द के विश्वविद्यालय की दशा इससे ठीक उलटी थी। केवल यही नहीं कि विद्यार्थियों से कुछ न लिया जाता था, किन्तु उलटा उन्हें प्रत्येक आवश्यक वस्तु मुक़्त दी जाती थी-अर्थात् भोजन, वस्त्र, औषध, निवास-स्थान आदि सब कुछ सेंतमेत मिलता था। यह प्रथा हिन्दोस्तान