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बौध्दकालीन भारत के विश्वविद्यालय
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श्री धन्यकटक का विश्वविद्यालय

इस युग का दूसरा प्रसिद्ध विश्वविद्यालय श्री धन्यकटक में था। यह स्थान दक्षिण भारत मे, कृष्णा नदी के किनारे, वर्तमान अमरावती के स्तूपों के निकट था।

बौद्धधर्म के महायान-सम्प्रदाय के चौदहवें धर्मगुरु, विख्यात रसायन-शास्त्रवेत्ता और चिकित्सक, नागार्जुन के समय में यह सब उन्नत दशा मे था और देश-देशान्तरों में प्रसिद्ध हो गया था। चीन यात्री इत्सिंग के कथनानुसार नागार्जुन महाशय ईसा की चौथी शताब्दी में थे।

यहां पर वैदिक और बौद्ध दोनों प्रकार के ग्रन्थ पढ़ाये जाते थे। तिब्बत की राजधानी लासा के निकट डायंग-विश्वविद्यालय इसी के नमूने पर बनाया गया था। पठन-पाठन-विधि वहाँ भी वैसी ही थी जैसे कि नालन्द मे।

ओदन्तपुरी और विक्रमशिला के विश्वविद्यालय

यह हम लिख चुके है कि बौद्ध काल का तीसरा युग सातवीं शताब्दी से प्रारम्भ होता है। इस समय के बौद्ध महन्तों में पहले का जैसा धार्मिक उत्साह बाकी न था, परन्तु वैज्ञानिक खोज करने का जोश खूब बढ़ गया था। वैद्यक और रसायन शास्त्र में उन लोगो ने अच्छी उन्नति की थी। इस तान्त्रिक बौद्ध धर्म का प्रचार बंगाल और विहार में बहुत था। उन दिनों मगध में पालवंश के राजा राज्य करते थे। उन्हीं के समय में बौद्ध उपदेशकों

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