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अतीत-स्मृति
 


ने तिब्बत जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार किया। इस युग में दो मुख्य विश्वविद्यालय थे एक ओदन्तपुरी में, दूसरा विक्रमशिला में। ये दोनों स्थान बिहार-प्रान्त में हैं। मगध में पालवंश का राज्य होने के बहुत दिन पहिले ओदन्तपुरी में एक बड़ा भारी विहार बनाया गया था। इसी विहार के नाम पर कुल प्रान्त का नाम विहार पड़ गया और पुराना नाम मगध लुप्त हो गया। महाराज महीपाल के पुत्र महापाल के समय में ओदन्तपुरी-विश्वविद्यालय मे बौद्ध धर्म के हीनयान-सम्प्रदाय के एक हजार और महायान-सम्प्रदाय के पाँच हजार महन्त रहते थे। पालवंश के राजों ने ओदन्तपुरी-विश्वविद्यालय मे एक बड़ा भारी पुस्तकालय स्थापित किया था। उसमें वैदिक और बौद्ध दोनों प्रकार के हजारो ग्रन्थ थे। सन् १२०२ ईसवी में मुसलमानों ने इस पुस्तकालय को जला दिया और महन्तों का कत्लेआम करके विहार को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। श्रीधन्यकटक-विश्वविद्यालय की तरह ओदन्तपुरी के नमूने पर भी तिब्बत में शाक्य नामक एक विश्वविद्यालय खोला गया था।

पाल राजे बड़े ही विद्यारसिक और विद्वानों के संरक्षक थे। उनका सम्बन्ध एक और विश्वविद्यालय से भी था। उसका नाम था विक्रमशिला। यह विद्यालय भागलपुर जिले के अन्तर्गत सुलतानगंज गाँव के निकट, गंगा के दाहिने किनारे, एक पहाड़ी की चोटी पर था। सब मिलाकर कोई एक सौ आठ भवन थे। इस विश्वविद्यालय के अधीन छः महाविद्यालय थे, जिनमें एक