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बौध्दों के द्वारा अमेरिका का अविष्कार
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'शाक्यमुनि' का अपभ्रंश है। तिब्बत के बौद्ध लोग अपने पुरोहित को 'लामा' कहते हैं। मेक्सिको में बौद्ध मत और बुद्ध-मूर्तियाँ सैकड़ों की तादाद में पाई गई है। इसके सिवा वहाँ ऐसे कई प्राचीन शिलालेख भी मिले है जिनसे यह मालूम होता है कि प्राचीन मेक्सिकोवासी बौद्धधर्मावलम्बी थे और गौतमबुद्ध की पूजा करते थे।

चीन के इतिहास-लेखक मातवानलिन कहते हैं कि-"कफिन देश (काबुल) का निवासी हुईशेन (इयसेन) नामक एक बौद्ध सन्यासी, ४९९ ईसवी में फुसॉग देश से चीन में आया था। उसने चीन के तत्कालीन सम्राट् युंग़युआन को बहुत कुछ नजर भी दी थी। सम्राट् ने युको नाम के मन्त्री को हुईशेन का भ्रमण-वृत्तान्त लिखने की आज्ञा दी थी"। चीनी भाषा में लिखा हुआ हुईशेन का भ्रमण-वृतान्त अब तक मौजूद है। उसमें हुईशेन ने कहा है कि सम्राट तामिंग के राजत्वकाल (४५८ ईसवी) मे काबुल बौद्ध का केन्द्र स्थान था। उसके पहले वहाँ के पाँच बौद्ध मिक्षु फुसाँग देश को गये थे और वहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार किया था।

फुसाँग देश चीन से कोई २०००० ली, अर्थात् ६५०० मील दूर है। वह १०००० ली, अर्थात् ३२५० मील, चौड़ा है और चारो ओर समुद्र से घिरा हुआ है।

फुसाँग एक प्रकार का वृक्ष होता है। यह वृक्ष पूर्वोक्त फुसाँग देश में बड़ी कसरत से होता है। हुईशेन ने उसी वृक्ष के नाम