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फ़ा-हियान की भारत-यात्रा
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तरह, लाप नामक झील के किनारे पहुँचे तब उनकी बड़ी बुरी दशा थी। कितने ही यात्रियों के छक्के छूट गये और उन्होंने आगे बढ़ने का विचार छोड़ दिया। पर फा-हियान ने हिम्मत न हारी। वह दो-चार मित्रों सहित आगे बढ़ा और नाना प्रकार के कष्टों को सहता हुआ, दो मास मे, ख़ुतन पहुँचा। लोगो ने ख़ुतन में उनका अच्छा आदर-सत्कार किया। उस समय ख़ुतन एक हरा-भरा बौद्ध राज्य था। पर इस समय ख़ुतन उजड़ा पड़ा है। परन्तु, हाल ही में, डाक्टर स्टीन ने उसकी पूर्व-समृद्धि के बहुत से चिह्न पाये हैं। प्राचीन महलो, स्तूपों, विहारों और बाग़ों के न मालूम कितने चिह्न उन्हे मिले हैं। उन्होंने इस सम्बन्ध में एक पुस्तक लिखी है, जो बड़े महत्व की है।

ख़ुतन से फा-हियान काबुल आया। उस समय काबुल उत्तरीय भारत के अन्तर्गत था। काबुल से वह स्वात, गान्धार और तक्षशिला होता हुआ पेशावर पहुँचा। पेशावर मे उसने एक बड़ा ऊँचा, सुन्दर और मजबूत बौद्ध स्तूप देखा। सिन्धु नदी पार करके वह मथुरा आया। मथुरा का हाल वह इस प्रकार वर्णन करता है-

मथुरा में, यमुना के दोनो किनारों पर, बीस संघाराम है, जिनमें लगभग ३००० साधु रहते हैं। बौद्धधर्म्म का खूब प्रचार है। राजपूताना के राजा बौद्ध है। दक्षिण की ओर जो देश है वह मध्य-देश कहलाता है। इस देश का जल-वायु न बहुत उष्ण है, न बहुत शीतल। बर्फ अथवा कुहरे की अधिकता नहीं है।