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फा-हियान की भारत-यात्रा
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मथुरा से फा-हियान कन्नौज आया। वह नगर, उस समय, गुप्त राजों की राजधानी था। उसने कन्नौज के विषय में इसके सिवा और कुछ नहीं लिखा कि वहाँ संघाराम थे। कौशल-राज्य की प्राचीन राजधानी श्रावस्ती उजाड़ पड़ी थी। उसमें केवल दो सौ कुटुम्ब निवास करते थे। जैतवन, जहाँ भगवान बुद्ध ने धर्मों-पदेश किया था, अच्छी दशा में था। वहाँ एक सुन्दर विहार‌ था। बिहार के पास एक तालाब था, जिसका जल बड़ा निर्मल था। कई बान भी थे, जिनसे विहार की शोभा बहुत बढ़ गई थी। विहार में रहने वाले साधुओ ने फाहियान का हर्ष-पूर्वक स्वागत किया और उसकी इस कारण बड़ी चढ़ाई की कि उसने यात्रा धर्मप्रेम के वशीभूत होकर की थी।

भगवान बुद्ध के जन्म-स्थान, कपिल-वस्तु, की दशा, फा-हियान के समय मे, बुरी थी। वहाँ न कोई राजा था, न प्रजा। नगर प्रायः उजाड़ था। केवल थोड़े से साधु और दस-बीस अन्य जन वहाँ थे। कुशीनगर भी, जहाँ भगवान बुद्ध की मृत्यु हुई थी, बुरी दशा में था। उस वैसाली नगर को, जहाँ चौद्ध धर्म की पुस्तकों का संग्रह करने के लिए बौद्धों का दूसरा सम्मेलन हुआ था, फा-हियान ने अच्छी दशा में पाया। प्रसिद्ध पाटलिपुत्र नगर के विषय में फा-हियान ने लिखा है कि उसका पुराना राजमहल बड़ा विचित्र है। उसको बनाने में बड़े बड़े पत्थरो से काम लिया गया है। मनुष्यों के हाथों से वह न बना होगा। बिना आसुरी शक्ति के कौन इतने बड़े बड़े पत्थर ऊपर चढ़ा सका होगा। अवश्य ही