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फ़ा-हियान की भारत-यात्रा
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और पथ्य भी उन्हें वहीं मिलता है। नीरोग हो जाने पर वे अपने घर चले जाते हैं।

राजगृह में पहला बौद्ध-सम्मेलन हुआ था। इसलिए उसे देखता हुआ फा-हियान गया पहुँचा। गया में उसने बोधि-वृक्ष और अन्य पवित्र स्थानों के दर्शन किये। वह काशी और कौशाम्बी भी गया। काशी में उस स्थान पर, जहाँ भगवान बुद्ध ने पहली बार सत्य का उपदेश दिया था, दो संघाराम थे। काशी से वह फिर पाटलिपुत्र लौट गया। फ़ा-हियान चीन से धार्मिक पुस्तको की खोज में चला था। पाटलिपुत्र में विनयपीठक की एक प्रति उसके हाथ लग गई। पुस्तक लेकर वह अङ्गदेश की राजधानी चम्पा होता हुआ ताम्रलिप्ति (तमलुक) पहुँचा। वहाँ उसने बौद्ध धर्म का अच्छा प्रचार देखा। उस नगर में २४ संघाराम थे। फ़ा-हियान वहाँ दो वर्ष तक रहा। यह समय उसने धर्म-पुस्तको की नक़ल करने में खर्च किया। तत्पश्चात् जहाज़ पर सवार होकर, लगातार १४ दिन और यात्रा करके वह सिंहल-द्वीप पहुँचा। वहां से वह अनिरुद्धपुर गया। बौद्धस्तूप और बोधि-वृक्ष के भी उसने दर्शन किये। लङ्का में उसने कुछ और भी धर्म-पुस्तको का संग्रह किया। लङ्का का वर्णन वह इस तरह करता है-

"लङ्का में पहले बहुत कम मनुष्य रहते थे। धीरे धीरे व्यापारी लोग वहाँ आने लगे। अन्त में वह वहाँ बस गये। इस प्रकार वहाँ की आबादी बढ़ी और राज्य की नींव पड़ी। वहाँ

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