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फ़ा-हियान की भारत-यात्रा
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एक और जहाज़ पर सवार हुआ। चलने के एक महीने बाद उस जहाज का भी कील-काँटा बिगड़ा। यह देख कर मल्लाहों ने सलाह की कि जहाज पर शर्मण फा़-हियान के होने ही के कारण हम पर यह विपत्ति आई है। अतएव कोई टापू मिले तो उसे वहीं उतार दें, जिसमें जहाज़ की यात्रा निर्विघ्न समाप्त हो। यह वहाँ चाहे मरे चाहे बचे। इस जहाज के यात्रियों में एक व्यापारी बड़ा सज्जन था। वह फ़ा-हियान से प्रेम करने लगा था। उसने मल्लाहो की इस सलाह का घोर प्रतिवाद किया। उसी के कारण बेचारा फ़ा-हियान, किसी निर्जन टापू में छोड़ दिये जाने से बच गया। ८२ दिन की यात्रा के बाद, दक्षिणी चीन के समुद्र-तट पर, वह सकुशल उतर गया और अपनी जन्मभूमि के पुनर्वार दर्शनो से उसने अपने को कृतकृत्य माना।

[दिसम्बर १९१५