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प्राचीन भारत में युद्ध-व्यवस्था
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तरह समझते थे। राजनीति को रचना करनेवाले कितने ही महर्षियों के नाम महाभारत मे हैं-

"वृहस्पतिर्हि भगवान् नान्यं धर्म प्रशंसति।
विशालाक्षश्च भगवान् काव्यश्चैव महातपाः॥
सहस्राक्षो महेन्द्रश्च तथा प्राचेतसो मनुः।
भारद्वाजश्च भगवान् तथा गौरशिरा मुनिः॥
राजशास्त्रप्रणेतारो ब्रह्मण्याब्रह्मवादिनः।"
महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय ५८, श्लो॰ १, २,३।

इन ऋषियों के बाद शुक्राचार्य का नीतिसार, कौटिल्य का अर्थ-शास्त्र और कामन्दक का नीतिसार आदि अन्य राजधर्म और राजनीति के नियमो से परिपूर्ण है। शुक्राचार्य का नीतिसार प्राचीन राजशास्त्रों के प्रणेता ऋषियों से कुछ पीछे का अवश्य है। पर है वह बड़े महत्व का शुक्राचार्य के नीतिसार में राजा का कर्तव्य, शत्रु और मित्र का निर्देश, कोश और द्रव्य का संरक्षण, दुर्गों की रक्षा और सेना सजाना आदि कई विषय बड़े मार्के के हैं। अन्त में व्यवहार-शास्त्र पर भी एक अच्छा निबन्ध है।

शुक्राचार्य राक्षसो के गुरु माने जाते हैं। उन्होंने कूट-युद्ध और धर्म-युद्ध दोनों का वर्णन किया है। नियम और न्याय-पूर्वक जो युद्ध न हो उसे वे भी कूट-युद्ध अर्थात् अधर्मयुद्ध मानते हैं। जिस प्रकार राक्षसों का कूट-युद्ध करना कहीं कहीं प्रसिद्ध है उसी प्रकार शुक्राचार्य ने राम, कृष्ण और इन्द्र आदि देवताओं का