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प्राचीन भारत में युद्ध-व्यवस्था
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पहले योरप मे कुछ कुछ ऐसे ही नियम प्रचलित थे। वर्तमान युद्ध में तो नियमों की बहुत कुछ अवहेलना हो रही है, जो जर्मनी की उच्च सभ्यता का फल है।

ऊपर के प्रमाणों से भारत की सभ्यता का भी अच्छा परिचय मिलता है। भारतीय जन-समाज उस प्राचीन समय में भी उन्नति के जिस पथ पर था वह और देशो के लिए इस समय भी दुर्लभ है। आज कल विपक्षी की प्रजा तथा भूमि और नगर आदि व्यर्थ हो नष्ट किये जाते हैं। यह बात पूर्व-काल मे न होती थी। महाभारत के युद्ध में १८ *[१] अक्षौहिणी सेना थी। एक अक्षौहिणी मे २१,८७० रथारूढ़, इतने ही गजपति, ६५,६१० घुड़सवार और १,०९,३५० पैदल होते है। इस प्रकार पाण्डवों की ७ अक्षौहिणी और कौरवों की ११ अक्षौहिणी मिला कर कोई चालीस लाख सेना हुई। यह इतनी बड़ी सेना यदि प्रजा को कष्ट पहुँचाना और देश का नाश करना चाहती तो खूब कर सकती थी। इस युद्ध में भारत के सारे राजे-महाराजे शामिल थे। यदि वे एक दूसरे की सीमा पर अपना अपना अधिकार जमाना चाहते और एक दूसरे के साथ वहीं लड़ाई प्रारम्भ कर देते तो एक नया ही महाभारत होने लगता। पर ऐसा न होकर लड़ाई के लिए कुरु-क्षेत्र जैसा मैदान चुना गया, जिससे न तो प्रजा को कष्ट पहुँचा और न देश ही नष्ट हुआ।


    • अक्षौहिण्या, प्रमाणं तु लागाष्टैकद्विकैर्गजैः।

    रथैरेतैर्हयैविध्नैः पञ्चप्रैश्च पदातिभिः॥