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प्राचीन भारत में शस्त्र-चिकित्सा
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अवश्य दूर हो जायगा। प्राचीन भारत में शस्त्र-चिकित्सा का केवल प्रचार हो रहा हो सो नहीं वह उन्नत दशा में थी।

भारत में आयुर्वेदीय प्रणाली के अनुसार अब शस्त्र-चिकित्सा या जर्राही नहीं होती। उसका विशेष प्रचार सुश्रुत के समय से लगा कर वाग्भट के समय तक था। वाग्भट के समय से ही उसका प्रचार घटने लगा। मुखोपाध्याय जी की पुस्तक में हिन्दुओं के प्राचीन शास्त्रों आदि के चित्र देख कर अब तो लोगों को इस बात का विश्वास ही नहीं होता कि दो ढाई हजार वर्ष पहले कभी उनका उपयोग होता था।

शारीरिक विद्या (Anatomy) और शस्त्र-चिकित्सा की उत्पत्ति वास्तव में साम-वेद से हुई है। पर कायिक चिकित्सा का उत्पत्ति-स्थान अथर्ववेद है। अथर्ववेद में "आयुष्यानि" और “भैषज्यानि" आदि कई मन्त्र इस विषय के हैं। वैदिक साहित्य में शारीरिक और अस्त्र-चिकित्सा-सम्बन्धिनी बातों का वर्णन कई जगह है। जान पड़ता है, यज्ञों में मारे गये पशुओं के‌ अङ्ग-प्रत्यङ्गों के नाम ही से आयुर्वेदीय शारीरिक विद्या का उद्भव हुआ है।

वैदिक काल से लगाकर सुश्रुत के समय तक शस्त्र-चिकित्सा की अच्छी उन्नति हुई। सुश्रुत ने शस्त्र-चिकित्सा का महत्वपूर्ण वर्णन किया है। पर इस चिकित्सा में वैदिक काल से लगा कर सुश्रुत के समय तक जो उन्नति हुई उसका इतिहास मिलना कठिन है। केवल इतना ही जाना जाता है कि स्वर्गवैद्य भगवान्