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अतीत-स्मृति
 


धन्वन्तरि के अवतार काशिराज दिवोदास शस्त्र-चिकित्सा के सब से पहले प्रवर्तक हैं। उनके बारह शिष्य थे-सुश्रुत, औपधेनव, वैतरण, औरभ्र, पौष्कलावत, करवीर्य, गोपुर, रक्षिव, तिमि, काङ्कायन, गार्म्य और गालव। इनमे से औपधेनव, औरभ्र और पौष्कलावत के शल्यतन्त्रो (शस्त्रचिकित्सा-शास्त्रों) का उल्लेख सुश्रुत में है। ये सब तन्त्र अब लुप्त हो गये है। वे सुश्रुत के समकालीन थे या उसके पहिले भी मौजूद थे, इसके जानने का कोई उपाय नहीं। पर इसमे सन्देह नही कि वैदिक काल के बाद और सुश्रुत के समय के पहले शस्त्र-चिकित्सा विषयक बहुत से ग्रंथ थे।

भारत में शस्त्र-चिकित्सा का सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ सुश्रुत है। सुश्रुत ही की शस्त्र-चिकित्सा का सार वाग्भट ने अपने ग्रन्थ में लिखा है। वाग्भट ने शस्त्र-चिकित्सा के कुछ नवीन शस्त्रो का भी वर्णन‌ किया है। यही दोनो प्रन्थ भारतीय शस्त्र-चिकित्सा के आधार हैं। इनका और इन पर रची गई टीकाओं ही का आधार लेकर डाक्टर गिरीन्द्रनाथ ने अपनी पुस्तक लिखी है। अच्छा तो सुश्रुत और वाग्भट का समय कौन सा है। हानले साहेब ने सुश्रत को चैदिक युग का अन्थ ठहराया है। पर हमारी समझ में अथर्ववेद से पहले का वह नहीं हो सकता। सुश्रुत और परक के ग्रन्थ वैदिक युग मे बनें, यह सम्भव नहीं। अथर्ववेद का समय ईसा से एक हजार वर्ष पहले माना जाता है। अथर्ववेद में मन्त्रों द्वारा रोग-निवृत्ति का उपाय बताया गया है। चरक और सुश्रुत की