तथागत, अर्हत आदि को उसने ग्रन्थ के प्रारम्भ ही में नमस्कार किया है। अष्टाङ्गसंग्रह की रचना गद्य और पद्य में है, अष्टाङ्गहृदय को केवल पद्य में है। संग्रह वाग्मट का पहला ग्रन्थ है, हृदय दूसरा। गद्य-भाग याद नहीं रहता। इस कारण वाग्भट ने अष्टाङ्गहृदय की रचना केवल पद्य मे की और उसमें अनेक मनोहर छन्दों का प्रयोग किया।
अच्छा तो वाग्भट किस समय हुए? वाग्भट के पिता का नाम सिन्धुगुप्त और जन्मस्थान सिन्धु-देश था, पर जन्मकाल का कुछ पता नहीं चलता। हार्नली साहेब कहते है कि वाग्भट सातवीं शताब्दि में हुआ। वे बताते हैं कि चीन का इत्सिंग नामक संन्यासी सातवीं शताब्दी में भारत आया था। उसने लिखा है-"पहले आयुवद के आठों भाग अलग अलग थे। अब (सम्प्रति) एक आदमी ने उन्हें एक ही स्थान पर एकत्र कर दिया है।" इसी "अब" से वे अनुमान करते हैं कि वाग्भट का समय वही था। पर इत्सिंग का बतलाया हुआ व्यक्ति और कोई भी हो सकता है। वाग्भट भी हो सकता है। केवल "अब" पर अधिक जोर देना ठीक नहीं। वाग्भट के समय-निरूपण के लिये नीचे लिखे हुए प्रमाण प्रस्तुत किये जा सकते हैं-
(१) वाग्भट नागार्जुन के पीछे और निदानकार माधव के पहले हुए। माधव ने अपने निदान में अष्टाङ्ग-हृदय से कुछ अंश उद्धृत किया है।
(२) वाग्भट और माधवनिदान का अरबी-अनुवाद आठवीं