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अतीत-स्मृति
 


शताब्दी में हुआ। यदि ये प्राचीन और प्रमाणिक ग्रन्थ न होते तो अरबी वाले अपनी भाषा में इनका अनुवाद न करते। अतएव अनुमानतः माधव पाँचवी या छठीं शताब्दी में हुए और वाग्भट उन से सौ वर्ष पहले।

(३) तिब्बत की एक ग्रन्थावली में चरक, सुश्रुत और वाग्भट का अनुवाद तिब्बती भाषा में है। यह ग्रन्थावली आठवीं शताब्दी के मध्यकाल में बनी थी। चरक और सुश्रुत से वाग्मट बहुत पीछे हुए थे। तथापि पूर्वोक्त ग्रन्थावली के रचनाकाल से वे ४-५ सौ वर्ष पहले अवश्य हुए होंगे। ऐसा न होता तो चरक सुश्रुत के साथ उनके ग्रन्थ को उक्त ग्रन्थावली में स्थान न मिलता। इन प्रमाणों से मालूम होता है कि वाग्भट तीसरी या चौथी शताब्दी में विद्यमान थे।

इससे अनुमान किया जा सकता है कि ईसा से तीन चार सौ वर्ष पहले और इतने ही समय पीछे तक भारत में शस्त्र-चिकित्सा का खासा प्रचार था। शस्त्र-चिकित्सा के विषय में वाग्भट के परवर्ती कोई अच्छे ग्रन्थ नहीं मिलते। केवल पिष्टपेषण और टीकाओं की टीकायें ही मिलती हैं।

बहुत लोगों का ख्याल है कि भारत में, प्राचीन समय में, आज कल की तरह अस्पताल और औषधालय न थे। औषधालयों और अस्पतालों का अस्तित्व यहाँ अंगरेजों के समय से ही हुआ। कोई कोई उन्हें अरबवालों का आविष्कार बतलाते हैं। पर हमारी समझ में अरब-जाति से हिन्दू-जाति अधिक पुरानी है। हिन्दुओ