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अतीत-स्मृति
 

आदि ग्रंथों के लेखानुसार शस्त्रों के रूपों की कल्पना की है। साथ ही प्राचीन काल के यूनानी चिकित्सा-शस्त्रों का भी कुछ वर्णन किया है। पुस्तक के द्वितीय भाग में शस्त्रादि के कोई ८० चित्र हैं। वे अस्त्र-शस्त्र, यन्त्र-उपयन्त्र और बन्धनों की पट्टियों (Bandage) आदि के हैं।

शस्त्रादि-रूपों की कल्पना में डाक्टर गिरीन्द्र नाथ ने बड़ी सावधानी से काम किया है। उनके यन्त्रों और शस्त्रास्त्रों को देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि ये प्राचीन काल के नहीं है। आयुर्वेद में बताई प्रणाली का कहीं परित्याग नहीं किया गया।

अब विचार इस बात का करना है कि भारत से शस्त्र-चिकित्सा का लोप कैसे हुआ। वास्तव में इतनी बढ़ी-चढ़ी विद्या का नाम शेष हो जाना बहुत ही आश्चर्यजनक है। पर सच पूछा जाय वो यही कहना होगा कि जिस तरह भारत की प्राचीन कलाओं का लोप हो गया उसी तरह उसकी यह विद्या भी नष्ट हो गई।

शस्त्र-चिकित्सा की अवनति के मुख्य कारण ये हो सकते हैं। स्मृतियो में मुर्दों को चीरने-फाड़ने का निषेध है। बौद्ध धर्म का मूलमन्त्र "अहिंसा परमो धर्मः" है। इसी से जान पड़ता है कि इस विद्या की अवनति आरम्भ हुई और जैसे जैसे स्मार्त और बौद्धधर्म का संचार बढ़ा वैसे ही वैसे शस्त्र-चिकित्सा का ह्रास होता गया। फल यह हुआ कि लोग मुर्दा चीरने-फाड़ने में घृणा करने लगे। मुसलमानों के शासन समय में हिन्दुओं के