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प्राचीन भारत में शस्त्र-चिकित्सा
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शास्त्रों का जब अनादर शुरू हुआ तब यह विद्या बिलकुल ही विस्मृत हो गई। इन के सिवा दो कारण और भी हैं। एक तो औषधियों के द्वारा चिकित्सा-मान की उन्नति, दूसरे भारत में मूर्छा लाने योग्य किसी उत्तम औषधि का न होना।

जो कुछ हो, आज से कोई एक हज़ार वर्ष पहले भारत का चिकित्सा शास्त्र खूब उन्नति पर था। इसमे सन्देह नहीं। हज़ारों युद्ध होते थे, लाखों लोग घायल होते और मरते थे। क्या उस समय अंगच्छेदन (Amputation) और मरहम- पट्टी आदि का प्रबन्ध न था? ऐसा तो संभव नहीं जान पड़ता। जो ये बातें न होती तो सैनिकों को बुरी दशा होती। यह सब अवश्य था। नाई तक देहात में जर्राही करते थे। यह अभी कुछ ही दिन पहले की बात है।

हम अपने देश के डाक्टरों को सलाह देते हैं कि डाक्टर गिरीन्द्रनाथ को शल्य-चिकित्सा-विषयक अँगरेज़ी पुस्तक को अवश्य पढ़ें*[१]

[मई १९१५


  1. * बँगला की मासिक पुस्तक "भारतवर्ष"" में प्रकाशित श्री पंचानन नियोगी, एम॰ ए॰, के एक लेख से संकलित।