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प्राचीन भारत में जहाज़
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था। प्लीनी नाम का इतिहास लेखक कहता है कि छठी शताब्दी में भारत के व्यापारी समुद्र पार करके फ़ारिस के बन्दरों में पहुँचते थे। "रायल एशियाटिक सोसायटी" के जर्नल का पांचवां भाग पढ़ने से पता लगता है कि फ़ा-हियान नामक प्रसिद्ध चीनी यात्री भारतीय कर्मचारियों द्वारा परिचालित जहाज पर बैठकर अपने देश को रवाना हुआ था। उस जहाज पर कितने ही ब्राह्मण भी सवार थे।

हम वराहपुराण से समुद्र-यात्रा सम्बन्धी कुछ श्लोक नीचे उद्धृत करते है-

पुनस्तत्रैव गमने वणिग्भावे मतिर्गता॥
समुद्रयाने रत्नानि महास्थौल्यानि साधुभिः
रत्नपरीक्षकैः सार्द्धमानयिज्ये बहूनि च ॥
एवं निश्चित्य मनसा महासार्थपुरःस्सरः।
समुद्रयायिभिर्लोकः संविदं सूच्य निर्गतः॥
शुकेन सह संप्राप्तो महान्तं लवणार्णवम्।
पोतारूदास्ततः सर्वे पोत वाहैरुपोषिताः
राजतरङ्गिणी में यह लोक मिलता है-
सान्धिविग्रहिकः सोऽय गच्छम् पोतच्युतोऽम्बुधौ।
प्राप पारं तिमिप्रासात्तिमिमुत्पाप्यनिर्गतः॥

इन सब श्लोकों से यह निश्चय-पूर्वक कहा जा सकता है कि बहुत पुराने समय से भारतवासी नाव, जहाज़ और जलयान का व्यवहार करते पाते थे।