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प्राचीन भारत में राज्याभिषेक
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सम्मति ठीक है तो आप सब अनुमति दीजिए और जो ठीक न हो तो कहिए मैं क्या करूं? यह काम मैं पुत्र-प्रीति के वशीभूत होकर कर रहा हूँ, पर यदि यह ठीक न हो तो और कोई राज्य के हित की बात सोचिए-

यन्नेदं मेऽनुरूपार्थे मया साधु सुमंत्रितम्।
भवन्तो मेऽनुमन्यन्तां कथां वा करवाण्यहम्॥
यद्यप्येषा मम प्रीतिर्हितमन्यद्विचिन्त्यताम्। (वाल्मीकि)

उपस्थित दरबारियों ने राजा के भाव को समझ लिया। उन्होंने आपस में सलाह की। यह कहा गया कि दशरथ अब वृद्ध हो गये हैं। इन्हे शान्ति मिलनी चाहिए। राम वास्तव में योग्य हैं। अच्छी तरह विधिपूर्वक उसने विद्या पढ़ी है। सांग वेद जानता है। सज्जन है। मधुरभाषी है। प्रजा के सुख से सुखी होनेवाला है। सत्यवादी है। जितेन्द्रिय है। पराक्रमी है। बुद्धिमान है। प्रसन्न-मुख है। गाँव या नगर के लिए लड़ाई करने जाता है तो जीत कर ही लौटता है। लौट कर आते समय नगरवासियों से आत्मीय जनों की तरह कुशल-समाचार पूछता है। मुसकरा कर बात करता है। व्यर्थ किसी पर कृपा नहीं करता, और न व्यर्थ किसी पर क्रुद्ध ही होता है। नीतिज्ञ है। धीर है। गम्भीर है। प्रजापालन के तत्वों को खूब जानता है। मोह में फँसने वाला नहीं है। तीनों लोकों को भागने में समर्थ है। प्रजा के हित के सभी गुण इसमें मौजूद हैं। बड़ों की सेवा करता है। सब को कल्याण का मार्ग बतलाता है। इत्यादि-