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अतीत स्मृति
 

पर बिठा कर घी, दूध, दही, शर्करा और मधुमिश्रित पंचामृत से उसका अभिषेक किया जाता था। तदन्तर औषधि मिले हुए जल से स्नान कराया जाता था। जिन घड़ों से स्नान कराया जाता था वे सोने के होते थे और उनमें सहस्र धारायें होती थीं। पुरोहित अग्न्याधान करके अभिषेक करते थे। तीर्थों और समुद्र से अभिषेक के लिए जल लाया जाता था। जलाशयों का पानी भी उसमें रहता था। अभिषेक के समय मन्त्र पढ़े जाते थे। उनका आशय-

प्रजापति ने जिस पवित्र जल से सोम, वरुण, इन्द्र, मनु को राजा बनाया-अभिषेक किया-था उसी राष्ट्र को बढ़ाने वाली और राष्ट्र को अमर रखने वाली जलधारा से, तुझे राष्ट्रोचित बल के लिए, सम्पत्ति के लिए, यश के लिए और धान्यादि की समृद्धि के लिए मैं अभिषिक्त करता हूँ। तू महाराजाधिराज हो। इत्यादि-

इमा आपः शिवतमाः
इमा राष्ट्रस्य भेषजीः
इमा राष्ट्रस्य वर्द्धिनीः
इमा राष्ट्रभृतोऽमृतः
यामिरिन्द्रमभ्यपिञ्चत् प्रजापतिः
सोमराजानं वरुणो यमं मंनु
ताभिरद्भरभिषिञ्चामि त्वामहं
राज्ञां त्वमधिराजो भवेऽर्हे
बलाय, श्रियै यक्षसेऽन्नाद्याय।