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प्राचीन भारत में राज्याभिषेक
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महान्तं त्वा महीनां
सम्राजऺ चर्षणीनां
देवी जनित्र्यजीजनत´
भद्रा जनित्र्यनीजनत्

इसके बाद वस्त्र-धारणा की जाती थी। तिलक किया जाता था। भाई-बान्धवों में से योग्य पुरुष छत्र चामर आदि लगाते थे। छत्रपात्र, तेलपान आदि का दान होता था। ब्रह्मभोज होते थे। भांति भांति के दान दिये जाते थे। सब लोग नमस्कार करते थे:-

राजाधिराजाय ग्रसहाय साहिने
नमो वयं वैश्रमणाय कुर्महे
समे कामान् कामकामाय मह्यं
कामेश्वरो वैश्रमणो ददातु

वैश्रमणाय कुबेराय महाराजाधिराजाय नमः।

(राज्याभिषेकपद्धतिः)
 

इसके अनन्तर बड़े ठाठ से हाथी पर सवारी निकलती थी। शहर अच्छी तरह सजाया जाता था। जगह जगह अगर जला कर सुगन्धि की जाती थी। ध्वजा-पताकायें और वन्दनवारें लटकाई जाती थीं। झरोखो से स्त्रियां भी सम्राट् पर पुष्पों की वर्षा करती थीं-

हर्म्यवातायनस्थाभिर्भूषितामिः समन्ततः।
कीर्यमाणः सुपुष्पौधैर्ययौ स्त्रीभिररिन्दमः॥ (वाल्मीकि)