ऊँची, विचित्र बनावट की एक चीज मिली है। वह पलस्तर
की है और स्तूपाकार है । उस पर नीला और सुर्ख रंग है। ऊपर
कई प्रकार के पत्थर, जिसमें से कुछ रत्न-सदृश भी है, जड़े हुए है। जिस कोठरी के भीतर यह चीज मिली है वह साढ़े दस इंच चौकोर और २ फुट साढ़े आठ इंच ऊँची है। इस स्तूपाकार
वस्तु के भीतर लकड़ी की एक छोटी सी डिविया थी। वह सड़ी
मिली। उसमें मूंगा, सुवर्ण, हाथी दाँत, बिल्लौर के मनके आदि
थे। उसके भी भीतर धातु की एक छोटी सी डिबिया थी। उस
डिबिया के भीतर एक और डिबिया थी। उसमें काली काली जरा सी राख थी। यह राख किसी की अस्थियों की अवशिष्ट भस्म के सिवा और क्या हो सकता है।
यदि भारत के प्राचीन खंड़हरों की खुदाई के लिए गवर्नमेंट कुछ अधिक रुपया खर्च करती और यह काम कुछ अधिक झपाटे से होता तो दस ही पाँच सालों में अनेक खंडहर खुद जाते और उनसे निकली हुई वस्तुओं और इमारतों के आधार पर प्राचीन भारत का इतिहास लिखने में बहुत सुभीता होता। परन्तु, अभाग्य वश, वह दिन अभी दूर मालूम होता है।
[मार्च १८२२