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अतीत-स्मृति
 


सन्देह-हीन है। ग्रीक भाषा मे पर्वत-शब्द पुल्लिङ्ग और चेतनावान् है। अपभ्रंश होते होते वह सनद्कोश से "इंडिकस" हो गया। यही "इंडिकस" अंगरेज़ी राज्य में इंडिया (India) हुआ। अब देखिए, ज़ेन्दावस्ता का हिन्दव हिब्रू भाषा मे हुआ हन्द्। हिब्रू भाषा का हन्द् ग्रीक भाषा में हुआ हन्द् कोश-इडिकस। ग्रीक भाषा का इंडिकस अँगरेजी में हुआ है इंडिया।

हिन्दूकुश से अटक के किनारे तक जो लोग रहते है वे पश्तो भाषा बोलते हैं। ये लोग फ़ारस के आदिम निवासी है। फारसी से उनको भाषा बहुत मिलती है। धर्मान्तर ग्रहण करने के पहले ये लोग पारसियों की तरह अग्निपूजक थे। इन्हीं पश्तो बोलनेवाले भारतवासियों ने, अर्थात् ज़ेन्दावस्ता के माननेवाले अग्निसेवक पुराने पारसियो के वंशधरो ने, हन्द् शब्द के आगे हृस्व उ प्रयोग करके, उसे 'हन्दु' के रूप में बदल दिया। पश्तो व्याकरण के अनुसार हन्द् और हिन्द् शब्द के उत्तर हृस्व उ प्रत्यय करने से "युक्त" अर्थ होता है। प्रत्यय होने से हन्द् अर्थात् शक्ति, गौरव, विभव, प्रभाव इत्यादि इत्यादि महिमायुक्त जाति सूचक होती है। क्योकि परतो-व्याकरण के नियमानुसार उ प्रत्यय "गुणवाचक जाति या गुणवाचक पुरुष के आगे होता है"। प्राचीन आर्य्य हिन्दू-जाति के गौरव, पवित्रत्व और विभव आदि को देख कर ही पश्तो बोलने वालो ने उ प्रत्यय का प्रयोग किया था। पश्तो भाषा मे हन्द् और हन्दु शब्द गौरववाचक है। इसके प्रमाण मे पश्तो भाषा के दो पद्य नीचे पढ़िए-